Sunday

#24

 इस मन के ऐसे भाग कई 

है प्रश्न, कहानी, राज़ कई 

ये मन में हर दिन भगते है 

सुख चैन को मेरे ठगते है 

हर रोज़ इन्हे मैं सेहता हू 

बस सोच-सोच में रहता हू 

की यू होता तो क्या होता 

जो ना होता तो क्या होता?

निष्कर्ष न उत्तर पाता हू 

बस प्रश्न बनाता जाता हू 


Wednesday

#23

हो इच्छा या ख्वाब, या प्रश्न बेहिसाब,
इस दुनिया का दबाव, या मन का तनाव,
कल्पना-हकीकत, छल-कपट,
सब कुछ देखना चाहता हूँ
मैं फिरसे लिखना चाहता हूँ।

जो समझाया सबने, जो सोच से आया,
जो खोया नशे में, जो साकी से पाया,
दोस्ती के किस्से, या अनजान से मुलाकात,
मैं हर इक बात बतलाना चाहता हूँ,
मैं फिरसे लिखना चाहता हूँ।

कुछ बातें सरल सी जो जीना सिखा गयी,
और मेहनत क्षणों की, समझ जिससे आ गयी,
'वो नोटों की लालच और सिक्को मे भिक्षा',
वो हार से मिलता साहस, और ग़रूर जीत का,
मैं हर अनुभव को साझा करना चाहता हूँ,
मैं फिरसे लिखना चाहता हूँ।

इस राजनीतिक विचारधारा का रंग समझना चाहता हूँ,
'लेफ्ट, राइट, सेंटर' हर ढंग समझना चाहता हूँ,
जो अज्ञानता में ख़ुशी को था खोजता
आज निष्पक्ष्ता से अपनी बात रखना चाहता हूँ,
मैं फिरसे लिखना चाहता हूँ।

ये अंधी दौड़ जो रुक अब गयी है,
सफलता की होड़, अब ठप हो गयी है
एकांत मन है, सवालों से भरता,
उन सारे उपेक्षित खयालो से भरता,
इन सवालो के जवाब और खयालो की समझ रखना चाहता हूँ,
मैं फिरसे लिखना चाहता हूँ।

#17

इस सत-असत्य खेल मे
इक वो ही तो महान है
है सत्य जिसका रास्ता
पर झूठ का वाहन है

ये धर्म की तालीम तो
है सत्य की रक्षा मगर
जो झूठ तू न बोलेगा
तो ठप तेरी दूकान है

ये बात हमने जानी है
हा अब इसे पहचानी है
इन्साफ के मंदिर नहीं
ये खेल के मैदान है

ये धर्म की रक्षा नहीं
ये कर्म ही कुछ और है
की सत्य को है मूंदना
और तथ्य से ठगान है

ये दौड़ जीतने की है
हा सत्य चाहे कुछभी हो
न वक़्त का बधान है
न तर्क का प्रमाण है

न बोलता विस्तार से
ये मन कि बस थकान है
है धर्म की शिक्षा अलग
यथार्त अ-समान  है

Friday

#16

वो सोच ही क्या जो नींद न उड़ाए
वो ख्याल ही क्या, की सोते ही खो जाए
खुली आँखों से सपने बना
जो नींद नहीं आती है

है अभिशाप नहीं, ये वरदान बड़ा है
न दखल किसी की, तू एकांत पड़ा है
इस समय को व्यर्थ न कर उपजाऊ बना
जो नींद नहीं आती है

लोग कहते है, सपने वो जो सोने न दे
अधूरे ख्वाबो को कबतक अतिरंजित करेगा ?

ये बिस्तर तेरी नोटबुक और तकिया कलम
इन सपनो को पूरा करने की नीति बना
जो नींद नहीं आती है

क्यों वजह जान कर भी अनजान बनता है
कारन जान के भी नादान बनता है
खुली आँखों से सोना तो और भी है बुरा
एक काम कर दो जाम लगा
जो नींद नहीं आती है


Tuesday

#14

क्या ख़ाक लिख सकूगा में बातें जुदा सी
है मन मेरा विचलित, औ' हालत रूआं सी

हा कब पूरी होगी तेरी इच्छा-ए-साकी
ये हाथ कपकपाते, है दिल में उदासी

था जो कुछ भी माँगा, में कुछ कर न पाया
तेरी दोस्ती की कदर कर न पाया
है तुझको ये मालूम न दिल का बुरा हु
की कपटी में मन से, प' दिलसे भला हु

हूँ करता ये वादा, की कुछ तो लिखुगा
कविता नहीं इक कहानी रचुगा
यु बतलाऊंगा तुझको बातें पुरानी
नई सी लगेगी, तुझे तेरी कहानी

की सब कोई समझे वो बातें न होंगी
कोई सुर न होगा, न लय ताल होगी
क्या शब्दों से वर्णन में कर भी सकूगा ?
तेरी सादगी को पकड़ भी सकूगा?

न पहचानता तुझको इतना भी साकी
इक पल में लिख दू कहानी जुदा सी
औ' में भी बिज़ी हु तो कुछ वक़्त लूंगा
की इस मैत्री को में संगीत दूंगा

अगर लिख न पाऊ, गलत न समझना
हमेशा की गलती समझ माफ़ करना
कि शब्दों से दुर्लभ, में कुछ कह न पाता
अनोखी ये बातें में मन मे छुपाता

अब लिखता हू अंतिम कथन, याद रखना
है कॉलेज खतम में तो हू, याद रखना
हो सुख या हो दुख, तू मुझको बताना
औ' खो के नशे में न मुझको भूलना  : D








Saturday

#12

छोड़ भी दे इन बातो को
जिनपे तू रुस्वा होती है
इन यादो को उन वादों को
जिन्हें सोच-सोच तू रोती है
मन पीड़ित है तो सोच ज़रा
क्यों खुदको कोई झुकाएगा?
जब जानता है की डूबेगा
फिर सागर मे क्यों जाएगा?
यू हार के ऐसे बैठी है
मन मार के ऐसे बैठी है
कोई शस्त्र उठा ना रक्त बहा
किस वार से ज़ख़्मी रहती है?
 बड़ आगे जीवनधारा में 
उस रब को तुझसे आशा है
ये हार सही पर अंत नहीं
अभी बहुत बचा तमाशा है 
पा जीत नई कर प्रीत नई
की वक़्त अभी भी बाकी है
कुछ खोये तूने राहो में
कुछ गीत अभी भी बाकि है।

Wednesday

#10

ये राग जो दिल में छाया है
 वो भाग न ऐसे जाएगा 
तू डाल असीमित रोक सही 
वो लौट दोबारा आएगा 

इस चाह का कोई अंत नहीं 
यु कबतक तू ललचाएगा 
है प्राण बडे या चाह तेरी 
ये भेद समझ न पाएगा 

गर सोच सके तो सोच सही 
क्या ख़ाक तू इससे पाएगा
ढील-मिल दिखती राह पाय तू यु 
कबतक ठोकर खाएगा 

जब देखके खुदको शीशे मे 
यु खुदसे तू टकराएगा 
थी चाह बड़ी या शर्म तेरी 
ये माप तुझे बतलाएगा