Wednesday

#17

इस सत-असत्य खेल मे
इक वो ही तो महान है
है सत्य जिसका रास्ता
पर झूठ का वाहन है

ये धर्म की तालीम तो
है सत्य की रक्षा मगर
जो झूठ तू न बोलेगा
तो ठप तेरी दूकान है

ये बात हमने जानी है
हा अब इसे पहचानी है
इन्साफ के मंदिर नहीं
ये खेल के मैदान है

ये धर्म की रक्षा नहीं
ये कर्म ही कुछ और है
की सत्य को है मूंदना
और तथ्य से ठगान है

ये दौड़ जीतने की है
हा सत्य चाहे कुछभी हो
न वक़्त का बधान है
न तर्क का प्रमाण है

न बोलता विस्तार से
ये मन कि बस थकान है
है धर्म की शिक्षा अलग
यथार्त अ-समान  है

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