ये राग जो दिल में छाया है
वो भाग न ऐसे जाएगा
तू डाल असीमित रोक सही
वो लौट दोबारा आएगा
इस चाह का कोई अंत नहीं
यु कबतक तू ललचाएगा
है प्राण बडे या चाह तेरी
ये भेद समझ न पाएगा
गर सोच सके तो सोच सही
क्या ख़ाक तू इससे पाएगा
ढील-मिल दिखती राह पाय तू यु
कबतक ठोकर खाएगा
जब देखके खुदको शीशे मे
यु खुदसे तू टकराएगा
थी चाह बड़ी या शर्म तेरी
ये माप तुझे बतलाएगा
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