Wednesday

#10

ये राग जो दिल में छाया है
 वो भाग न ऐसे जाएगा 
तू डाल असीमित रोक सही 
वो लौट दोबारा आएगा 

इस चाह का कोई अंत नहीं 
यु कबतक तू ललचाएगा 
है प्राण बडे या चाह तेरी 
ये भेद समझ न पाएगा 

गर सोच सके तो सोच सही 
क्या ख़ाक तू इससे पाएगा
ढील-मिल दिखती राह पाय तू यु 
कबतक ठोकर खाएगा 

जब देखके खुदको शीशे मे 
यु खुदसे तू टकराएगा 
थी चाह बड़ी या शर्म तेरी 
ये माप तुझे बतलाएगा 

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