Tuesday

#14

क्या ख़ाक लिख सकूगा में बातें जुदा सी
है मन मेरा विचलित, औ' हालत रूआं सी

हा कब पूरी होगी तेरी इच्छा-ए-साकी
ये हाथ कपकपाते, है दिल में उदासी

था जो कुछ भी माँगा, में कुछ कर न पाया
तेरी दोस्ती की कदर कर न पाया
है तुझको ये मालूम न दिल का बुरा हु
की कपटी में मन से, प' दिलसे भला हु

हूँ करता ये वादा, की कुछ तो लिखुगा
कविता नहीं इक कहानी रचुगा
यु बतलाऊंगा तुझको बातें पुरानी
नई सी लगेगी, तुझे तेरी कहानी

की सब कोई समझे वो बातें न होंगी
कोई सुर न होगा, न लय ताल होगी
क्या शब्दों से वर्णन में कर भी सकूगा ?
तेरी सादगी को पकड़ भी सकूगा?

न पहचानता तुझको इतना भी साकी
इक पल में लिख दू कहानी जुदा सी
औ' में भी बिज़ी हु तो कुछ वक़्त लूंगा
की इस मैत्री को में संगीत दूंगा

अगर लिख न पाऊ, गलत न समझना
हमेशा की गलती समझ माफ़ करना
कि शब्दों से दुर्लभ, में कुछ कह न पाता
अनोखी ये बातें में मन मे छुपाता

अब लिखता हू अंतिम कथन, याद रखना
है कॉलेज खतम में तो हू, याद रखना
हो सुख या हो दुख, तू मुझको बताना
औ' खो के नशे में न मुझको भूलना  : D








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