Friday

#4

हो गयी पुरानी वो बातें मेरे मित्र
अंत उनका अभी हमको करना पड़ेगा

क्या पाएगे रखके उन बातो को मन मैं
सोचकर जिनको दिल में कुछ दुखता रहेगा

की खटती रहेगी सारी बातें यु मन मे
उन बातों को लेके जो बैठा रहेगा

न तू बड़ सकेगा न में बड़ सकूगा
और हालत पे अपनी जग हस्ता रहेगा

की गर हाथ बडाऊ नई दोस्ती का
क्या तू भी मेरी और युही बढ़ेगा

या अपनी इस हट पे तू टिका रहेगा
और अपने हे अंदर यू पिस्ता रहेगा

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