Wednesday

क्यों करती है बरखा निराश तुझको ??

लाती  है बरखा जब ये कुदरत
मिलती दिलो को जो ये कुर्बत
लगती है बारिश इक त्यौहार सी
उठता है मन मे ये सवाल की
दिखती तुझे जो ये वर्षा है
लगता तुझे  जो भी नया है

क्यों लगता नहीं मुझे  वैसा सा
क्यों आता नहीं मुझको मज़ा सा

रोती लगे मुझको ये कुदरत
अंधकार के बादल सर पर
ये गर्जन, ये बिजली है क्रोध खुदा का
ये बहता पानी, वो झोंका हवा का

क्या सोचा कभी तुमने ऐसा की
है बारिश नाराज़गी उस खुदा की
क्या पाते है हम इस बौछार से
जो मिटाती उजाला अंधकार से

माना नजरिया सबका जुदा  है
प्रश्न तुम्हारा, उत्तर मेरा है

करता हु अंत मैं इस उम्मीद पे
पाओगी जवाब अपना, मेरी पंक्ति में।

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